श्री बड़े दादाजी महाराज एवं श्री छोटे दादाजी महाराज माँ नर्मदा के परम भक्त थे
माँ नर्मदा समूचे विश्व में दिव्य है,जिनकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या
में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड में किया है। इस
नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए
ही अमरकण्टक के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा १२ वर्ष की दिव्य कन्या
के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण
नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी
क्षेत्र में १०,००० दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त
किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं हैं. श्री बड़े दादाजी महाराज स्वयं
को माँ नर्मदा का पुत्र मानते थे. दादा दरबार परिसर में माँ नर्मदा का मंदिर स्थित
है जहाँ नियमित पूजन एवं नैवेद्य अर्पित जाता है. श्री दादाजी की समाधी पर माँ नर्मदा
जी की आरती ही की जाती है. दादाजी के भक्त नर्मदाजी का दर्शन अवश्य करते हैं .
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